Mother Forced haircut story
गाँव के कोने वाले गली में हमारा छोटा सा घर है। मैं, अरुण, एक आम लड़का हूँ, और यह किस्सा हमारे घर का है, लेकिन इससे जुड़े जज्बात बड़े गहरे हैं।
देखो भैया, हमारे अप्पा बड़े ही कड़क मिजाज के आदमी हैं। सुबह दुकान पर जाते हैं, रात में घर लौटते हैं, लेकिन गुस्सा हर वक्त उनके माथे पर सजा रहता है। हमारे घर में उनके बोलने का मतलब होता है हुक्म।
और अम्मा? अम्मा तो सीधी-सादी सी महिला हैं। बोलती कम हैं, काम में लगी रहती हैं। लेकिन उनकी खूबसूरती का क्या कहें! उनके लंबे, काले घने बाल जैसे किसी फिल्म की हीरोइन के हों। उनको देखकर सब यही कहते, "क्या बाल हैं भाभीजी, कितने घने, कितने सुंदर!" लेकिन भाई, यही बाल एक दिन उनके लिए मुसीबत बन गए।
उस दिन अम्मा ने बाल धोए थे। रसोई में बाल खोलकर काम कर रही थीं। लंच पर अप्पा के लिए गरमा-गरम रसाम और चावल तैयार था। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अप्पा की थाली से एक लंबा काला बाल निकला।
बस फिर क्या, "ये क्या है? मेरे खाने में बाल? मैंने कहा था ना, अगर दोबारा ऐसा हुआ तो..." उनकी आवाज़ इतनी जोर से गूँजी कि पड़ोसी भी सुन लें। अम्मा रोने लगीं, "माफ कर दीजिए, ऐसा दोबारा नहीं होगा।"
कुछ दिन बाद नाश्ते के दौरान फिर वही हुआ। अप्पा की थाली से एक और बाल निकल आया। इस बार उन्होंने नर्मी नहीं दिखाई। "अरुण, जा नाई को बुला ला। अभी!"
भाई, मैं तो हैरान रह गया। अम्मा की आँखों में आँसू थे, "नहीं... ऐसा मत करो।" लेकिन अप्पा का गुस्सा रुकने का नाम नहीं ले रहा था।
गली के नुक्कड़ से नाई को लाया। वो अपनी किट लेकर बगीचे में आ गया। "भाई साहब, किसका बाल काटना है?"
अप्पा ने गुस्से में कहा, "मेरी पत्नी के बाल। अभी और यहीं।" अम्मा की हालत तो देखो... हाथ काँप रहे थे। वो कहती रही, "मैं ऐसा नहीं करवा सकती।" लेकिन अप्पा ने नाई को इशारा कर दिया।
अम्मा को स्टूल पर बिठाया गया। उन्होंने अपने बाल खोल दिए। भाईसाहब, क्या नज़ारा था! उनके घने, काले बाल एकदम किसी झरने की तरह बिखर गए। नाई ने बाल गीले किए और उस्तरा निकाल लिया।
पहला कट... उस्तरा सिर के बीचों-बीच चला। और बस, बालों का एक बड़ा सा गुच्छा ज़मीन पर गिर गया। मेरे दिल में अजीब सा एहसास हो रहा था। एक तरफ दुःख था, लेकिन दूसरी तरफ कुछ अजीब सा रोमांच भी।
नाई ने धीरे-धीरे पूरा सिर साफ कर दिया। अम्मा का सिर अब एकदम चिकना हो गया था। अप्पा ने कहा, "एक बार और, साबुन लगाकर साफ करो।"
जब नाई ने दूसरी बार सिर पर उस्तरा चलाया, तो अम्मा का सिर किसी मखमली गेंद जैसा दिख रहा था। उनके झुमके और बिंदी के साथ वो अब भी सुंदर लग रही थीं। लेकिन वो आँसू... वो उनकी बेबसी दिखा रहे थे।
फर्श पर बालों का एक बड़ा ढेर जमा हो गया था। नाई ने पूछा, "भाईसाहब, क्या मैं इसे ले जाऊँ? इससे अच्छे पैसे मिलेंगे।"
अप्पा ने कहा, "ले जा। मुझे कोई मतलब नहीं।"
उस दिन के बाद अम्मा ने खाना बनाते वक्त हमेशा सिर को ढँकना शुरू कर दिया। कुछ महीनों बाद उनके बाल वापस बढ़ गए, लेकिन भाई, उस दिन की याद आज भी मेरे दिल में जिंदा है।
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गली बार फिर मिलते हैं एक नई कहानी के साथ।
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